बिहार विधानसभा 2025: क्या इस बार एनडीए गठबंधन राजपूतों को नजरअंदाज कर रही ?क्या राजपूतों को दरकिनार करके चुनाव लड़ेगी NDA गठबंधन ?
- BMW News
- Apr 2
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बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियाँ जोरों पर हैं, और सभी राजनीतिक पार्टियाँ अपने समीकरण दुरुस्त करने में जुटी हुई हैं। खासकर एनडीए ने अपनी तैयारियाँ तेज कर दी हैं। हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिहार के दौरे पर आए और संगठन को मजबूत करने के लिए कई कार्यक्रमों में शामिल हुए। इसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री आवास में एनडीए की बैठक भी की, जिसमें चुनावी रणनीति पर चर्चा हुई।
बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण बहुत मायने रखते हैं। चाहे वह मंत्रिमंडल का विस्तार हो या संगठन में प्रतिनिधित्व, हर जगह जातियों का संतुलन देखा जाता है। लेकिन एनडीए की हालिया बैठक में जो तस्वीर सामने आई, वह चौंकाने वाली थी। इस बैठक में ब्राह्मण जाति से दो नेता और भूमिहार जाति से तीन नेता मौजूद थे, लेकिन राजपूत जाति का कोई भी बड़ा चेहरा नजर नहीं आया। यह स्थिति तब है जब बिहार विधानसभा में 28 राजपूत विधायक हैं और नीतीश कुमार की कैबिनेट में 5 राजपूत मंत्री भी शामिल हैं। जातीय सर्वे के अनुसार, बिहार में राजपूतों की जनसंख्या 3.45 प्रतिशत है।
अगर पिछले चुनावों पर नजर डालें, तो 2020 के विधानसभा चुनाव में कुल 28 राजपूत विधायक चुने गए थे, जबकि 2015 में इनकी संख्या 20 थी। यानी इस बार आठ राजपूत विधायक ज्यादा जीते। बीजेपी ने 2020 में 21 राजपूतों को टिकट दिया था, जिनमें से 15 चुनाव जीतने में सफल रहे। जेडीयू ने 7 राजपूत उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से केवल 2 ही जीत पाए। इसके अलावा वीआईपी पार्टी के दो राजपूत उम्मीदवार जीते थे—राजू सिंह और सवर्णा सिंह। कुल मिलाकर, एनडीए ने 29 राजपूत उम्मीदवारों को टिकट दिया था, जिनमें से 19 ने विधानसभा में जगह बनाई।
महागठबंधन की बात करें तो तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 18 राजपूतों को टिकट दिया था, लेकिन इनमें से केवल 8 ही जीत सके। आरजेडी ने इस बार 8 राजपूत उम्मीदवार खड़े किए थे, जिनमें से 7 जीत गए। कांग्रेस ने 10 राजपूतों को टिकट दिया था, लेकिन उनमें से केवल 1 ही जीत पाया। इसके अलावा, एक निर्दलीय राजपूत उम्मीदवार ने भी जीत हासिल की। अगर 2015 के चुनावों से तुलना करें, तो बीजेपी के 9, आरजेडी के 2, जेडीयू के 6 और कांग्रेस के 3 राजपूत विधायक जीते थे। इस बार बीजेपी और आरजेडी ने राजपूत विधायकों की संख्या में इजाफा किया, जबकि जेडीयू को नुकसान हुआ।
अब सवाल यह है कि जब बिहार विधानसभा में राजपूत विधायकों की संख्या अच्छी-खासी है और सरकार में भी उन्हें जगह मिली है, तो एनडीए की बैठक में उनका बड़ा चेहरा क्यों नहीं दिखा? क्या यह कोई नई राजनीतिक रणनीति है, या फिर एनडीए इस चुनाव में किसी नए समीकरण की तैयारी कर रहा है? यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे चलकर राजपूत नेता अपनी भूमिका को लेकर क्या रुख अपनाते हैं और एनडीए इस वर्ग को कैसे संतुष्ट करता है। बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा अहम रहे हैं, और आगामी चुनावों में यह और भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
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